Lagna

उदय लग्न
वैदिक ज्योतिष और पंचांग के अनुसार उदय लग्न की गणना सूर्योदय से लेकर सूर्यास्त के दौरान किया जाता है। लग्न से तात्पर्य उस राशि से होता है जो व्यक्ति के जन्म के समय पूर्वी क्षितिज पर उदित हो रही होती है। मांगलिक कार्य व गृह प्रवेश के लिए भी लग्न को देखा जाता है।वैदिक ज्योतिष में लग्न को एक महत्वपूर्ण कारक माना जाता है, इसे उदय लग्न या उदित राशि के नाम से भी जानते है।
आसान शब्दों में बताएं तो पृथ्वी पर जब भी मनुष्य का जन्म होता है तब उस समय आकाश मंडल में उदित होने वाले राशि से उसका लग्न भाव बनता है। जन्म कुंडली का प्रथम भाव ही लग्न भाव होता है। जन्म कुंडली का लग्न भाव मनुष्य के जीवन के लिए बहुत अधिक महत्वपूर्ण होता है। जन्म कुंडली में लग्न भाव से व्यक्ति का चरित्र, व्यक्तित्व, बचपन, स्वभाव और आयु आदि के बारें में बताता है।
पंचांग के अनुसार उदय लग्न की गणना सूर्योदय से सूर्यास्त के दौरान की जाती है, इस समय आकाश मंडल में सभी 12 राशि पूर्वी क्षितिज पर उदित होती हैं जो समय के साथ अपना स्थान बदलती रहती है। लग्न की अवधि अर्थात् वह समय जिसमें कोई एक राशि क्षितिज पर अपना चक्र पूरा करती है। यह समयावधि किसी भी दो स्थान के लिए समान नहीं होती है। इसके अतिरिक्त किसी भी एक स्थान के लिए सभी बारह लग्नों की अवधि भी समान नहीं होती है।
उदय लग्न से तात्पर्य
कुंडली के अलावा मुहूर्त की गणना करने में भी लग्न को महत्वपूर्ण माना जाता है। विवाह, जनेऊ और गृह प्रवेश मुहूर्त अन्य सभी शुभ कार्यों के मुहूर्त के लिए शुभ लग्न का पता किया जाता है। सभी मांगलिक कार्यों के मुहूर्त के लिए प्रबल लग्न का चयन किया जाता है।
आसान शब्दों में कहें तो बारह राशियों में से जो कोई राशि पूर्व में उदय होती है उसे लग्न या पूर्वी क्षितिज पर उदय राशि कहते है। पूर्व में उदय होने वाली राशि उस समय की लग्न राशि कहलाती है।एक एक करके प्रत्येक राशि पूर्व में उदय होती है और पूर्वी क्षितिज के मध्य में से गुजरने में लगभग दो घंटे का समय लता है, इस क्रम में दिन के 24 घंटे में एक एक करके बारह राशियां उदय होती हैं। जन्म कुंडली के प्रथम भाव के आधार पर ही अन्य भावों की गणना की जाती है। लग्न में जो राशि और उसमें स्थित ग्रहों के प्रभाव के आधार पर व्यक्ति के बारें में फलादेश दिए जाते है।