कुंडली मिलान विवाह के प्रस्ताव को आगे बढ़ाने के लिए पहला कदम है। विवाह बंधन में बंधने से पहले भावी वर और वधु पर ग्रहों के प्रभाव से दोनों के स्वभाव में कितना अंतर है? आने वाले वैवाहिक जीवन में दोनों का जीवन कैसे बीतेगा? वह एकदूसरे को कितना समझ पाएंगे? भविष्य में घटने वाली घटनाओं के बारें में कुंडली मिलान के द्वारा अंदाजा लगाया जा सकता है। वैवाहिक जीवन में मतभेद ना होकर मेलजोल बना रहे यह कुंडली का उद्देश्य होता है।
शादी से पूर्व कुंडली मिलान बहुत महत्व माना जाता है। भारतीय संस्कृति के अनुसार युगल के विवाह उपरांत उनका साथ मजबूत होगा या नहीं यह उनके कुंडली मिलान से पता चलता है। कुंडली मिलान से युगल जोड़े के व्यक्तिगत कुंडली में यदि कोई दशा चल रही हो तो उसका भी पता इसके द्वारा चलता है। जिसका विवाह के बाद युगल के जीवन पर बुरा प्रभाव हो सकता है। साथ ही उनके रिश्ते को हानि पहुंचाने हेतु भी सक्षम हो सकता है।
कुंडली मिलान का सबसे पहला कार्य होता है गुण का मिलान। शादी में गुण मिलान बेहद आवश्यक होता है। किसी भी व्यक्ति की कुंडली में आठ तरह के गुणों और अष्टकूट का मिलान किया जाता है। ये गुण है- वर्ण, वश्य, तारा, योनि, गृह मैत्री, गण, भकूट और नाड़ी। इन सबके मिलान के बाद होते हैं कुल 36 अंक। कुंडली मिलान के समय यदि वर वधु दोनों की कुंडली में 36 में से 18 या उससे अधिक गुण मिलते हैं तो शादी सफल और अच्छी रहेगी। ये गुण स्वास्थ्य, दोष, प्रवृत्ति, मानसिक स्थिति, संतान आदि से संबंधित होते हैं।
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार शादी के लिए कितने गुण मिलना शुभ होता है और कितने अशुभ-
18 या इससे कम गुण मिलने पर- ज्योतिष की गणना के अनुसार 18 या इससे कम गुण मिलने पर ज्यादातर विवाह के असफल होने की संभावना ज्यादा होती है।
18-24 गुण मिलने पर- कुंडली मिलान में 18-24 गुण मिलने पर विवाह सफल तो होगी लेकिन इसमें समस्याएं आने की संभावना थोड़ी रहती हैं।
24-32 गुण मिलने पर- गुण मिलान में 24-32 गुण मिलने पर वैवाहिक जीवन के सफल होने की संभावनाअधिक होती है।
32-36 गुण मिलने पर- ज्योतिष के अनुसार इस तरह की शादी बहुत ही शुभ माने जाते हैं और इनमें समस्याएं बेहद कम होती हैं।
कुंडली मिलान में गुणों का मिलान तो किया ही जाता है कन्या और वर के जितने ज्यादा गुण मिलेंगे दोनों का वैवाहिक जीवन उतना ही बेहतर रहेगा। लेकिन यदि कुंडली में दोष हैं तो उनका निवारण भी आवश्यक है। यदि इन दोषों को नजर अंदाज करके विवाह कर दिया जाता है तो ज्योतिषीय मान्यताओं के अनुसार दांपत्य जीवन में कलह रहती है। कुंडली मिलान में सबसे अहम बात यह भी देखी जाती है कि जातक की कुंडली में मांगलिक दोष तो नहीं है क्योंकि यदि कुंडली में मांगलिक दोष है तो किसी ऐसे व्यक्ति से ही विवाह करवाना उचित समझा जाता है जो मांगलिक दोष से पीड़ित हो।
कुंडली मिलाने का तात्पर्य है दो कुंडलियों में सामंजस्य को देखना फिर वह किसी लाइफ पार्टनर के साथ हो सकता है या फिर आप चाहें तो व्यवसायिक पार्टनर के साथ भी तुलना कर सकते हैं।व्यक्ति ही नहीं बल्कि किसी स्थान विशेष की कुंडली से अपनी कुंडली मिलाकर भी आप जान सकते हैं कि उक्त जगह आपके लिए सही रहेगी या नहीं।
कुंडली मिलान किसी विद्वान ज्योतिष के द्वारा किया जाता है या करवाना चाहिए। एक अच्छा जानकार ज्योतिषी ही कुंडली का अच्छे से मिलान कर सकता है। इसमें दोनों कुंडलियों की ग्रह दशा का आकलन कर उनके स्वभाव को देखा जाता है, उनकी रुचियों को देखा जाता है कुल मिलाकर दोनों कुंडलियों के गुण दोष मिलाये जाते हैं।
वैदिक ज्योतिष यह मानता है कि ग्रहों का मानवी जीवन पर अनेक स्तरों पर प्रभाव पड़ता है इसलिए विवाह के बंधन में बंधने वाले वर वधु का वैवाहिक जीवन सुनिश्चित करने के लिए कुंडली मिलान एक असरदार माध्यम है। सही से कुंडली मिलान के बाद वैवाहिक जीवन में सुख, शांति, खुशी और सद्भाव बढ़ता है।
वर्ण/ वरण/ जाती
यह पहलू अनेक स्तरों के साथ लड़का या लड़की की आध्यात्मिक रूचि या स्टार को दर्शाता है। ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र ऐसा चार श्रेणियों में इस गुण को बांटा गया है। इसका असर व्यक्ति के स्वभाव पर भी दिखाई देता है।
वस्या/ वश्या
यह गुण लड़का और लड़की के आपसी आकर्षण ओर नियंत्रण को दर्शाता है । इसके साथ वैवाहिक जीवन में अपने साथी के शक्ति का परिचय भी देता है। एक गुण 5 अलग अलग प्रकारों में विभाजित किया गया है। नारा (मानव)/ वन्खार (खूंखार जंगली शिकारी जिव)/ चतुष्पाद (चार पैरों वाले छोटे जानवर)/ जलचर (समुद्री जीव)/ किता (कीड़े)/ दिना (27 जन्म नक्षत्र में से एक)
योनि
इस गुण से वैवाहिक साथी से आपसी प्रेम को नापता है। योनि कूट 14 विभिन्न जानवरों में विभाजित किया गया है। घोड़ा, भेड़, सांप, कुत्ता, बिल्ली, चूहा, गाय, भैंस, बाघ, हिरण, बंदर, शेर, मोंगोज इनमें शामिल होती है।
ग्रह मैत्री/ राशि आदिपति
यह व्यक्ति के मानसिक अनुकूलता, स्नेह और प्रेम भाव को दर्शाता है। वधु और वर के बीच दोनों की कुंडली में से चंद्रमा इसका प्रतिनिधित्व करता है।
गण
यह गुण व्यक्ति के दूसरों के प्रति व्यवहार और स्वभाव को दर्शाता है। इसके लिए 27 नक्षत्रों को तीन हिस्सों में विभाजित किया गया है। जिनमें देव गण मनुष्य/ मानव गण, और राक्षस गण है। देव गण सत्वगुणी स्वभाव दर्शाता है। मनुष्य गण मानवी गुण को दर्शाता है तथा राक्षस गण तामसी गुण दर्शाता है।
राशिया भकूट
यह गुण वैवाहिक साथीदार के बीच सामंजस्य, अनुकूलता को दर्शाता है। वधु और वर के कुंडली में स्थित चंद्रमा की राशि पर इसका अनुमान लगाया जाता है। चंद्रमा की स्थिति साथी से शुभ व अशुभ की स्थिति को दर्शाता है।
नाड़ी
यह गुण वधु या वर के अपने जीवन की स्वास्थ्य और जीन को दर्शाता है। प्रत्येक 27 नक्षत्रों को 3 हिस्सों में बांटा गया है, जिसमें आदी (वात) नाड़ी, मध्य (पित्त) नाड़ी और अंत्य (कपा) नाड़ी को दर्शाता है।
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