भगवान विष्णु के स्वरूप तिरुपति बालाजी के बारें में ऐसी प्राचीन कथा है जिसके अनुसार बालाजी कलियुग के अंत तक कर्ज में रहेंगे। बालाजी के ऊपर जो कर्ज है उसे चुकाने के लिए यहां भक्त धन, सोना तथा अन्य बहुमूल्य वस्तुएं दान करते हैं। आइए जानते हैं पौराणिक कहानी-
क्या है पौराणिक कहानी
बात उस वक्त की है, जब बेहतर ब्रह्मांड की खातिर ऋषि मुनियों ने एक यज्ञ शुरु किया था। लेकिन सवाल ये था कि ब्रह्मा, विष्णु और महेश में उस यज्ञ का पुरोहित किसे बनाया जाए। सभी ऋषि मुनियों ने ये जिम्मेदारी भृगु ऋषि को सौंपी क्योंकि वही देवताओं की परीक्षा देने का साहस कर सकते थे।
भृगु ऋषि भगवान ब्रह्मा के पास पहुंचे। लेकिन भगवान ब्रह्मा वीणा की धुन में लीन थे। उन्होंने भृगु ऋषि की तरफ ध्यान ही नहीं, जिससे नाराज होकर भृगु ऋषि ने श्राप दिया कि धरती पर कोई उनकी पूजा नहीं करेगा। भृगु ऋषि फिर महादेव के पास पहुंचे लेकिन उस वक्त भगवान शंकर भी मां पार्वती से बातचीत में खोए हुए थे। ऋषि भृगु फिर नाराज हुए और भगवान शंकर को ये श्राप दिया कि इस संसार के किसी मंदिर में उनकी मूर्ति नहीं लगाई जाएगी। अब भृगु ऋषि ने बैकुंठ धाम में भगवान विष्णु को कई आवाजें दीं। लेकिन भगवान ने कोई जवाब नहीं दिया। गुस्से में आकर
भृगु ऋषि ने भगवान विष्णु के सीने पर पैरों से प्रहार किया।
मां लक्ष्मी से शादी करने के लिए कुबेर से लिया कर्ज
ऋषि भृगु ये बात भूल गए कि भगवान विष्णु के सीने पर देवी लक्ष्मी का वास है। उस हरकत के बाद भगवान विष्णु ने ऋषि भृगु को माफ कर दिया। लेकिन देवी लक्ष्मी रुठ गईं और नाराज होकर बैकुंठ धाम छोड़कर चली गईं। पौराणिक कथा के अनुसार भगवान विष्णु से नाराज होकर देवी लक्ष्मी धरती पर आ गईं और लक्ष्मी के बिना भगवान विष्णु कंगाल हो गए और मां लक्ष्मी को ढ़ूंढ़ते हुए भगवान विष्णु भी धरती पर आए। देवी ने पृथ्वी पर पद्मावती नाम की कन्या के रूप में जन्म लिया। भगवान विष्णु ने अपना रूप बदला और वेंकटेश रूप पहुंच गए पद्मावती के पास।
भगवान ने पद्मावती के सामने विवाह का प्रस्ताव रखा जिसे देवी ने स्वीकार कर लिया, लेकिन प्रसन्न सामने यह आया कि विवाह के लिए धन कहां से आएगा।
पौराणिक कहानियों के मुताबिक उस दौर में शादी से जुड़ी एक प्रथा थी जिसे कन्या शुल्क कहा जाता था। शादी से पहले वर को ये कन्या शुक्ल चुकाना पड़ता था। लेकिन देवी लक्ष्मी के जाने से भगवान विष्णु कंगाल हो चुके थे और धरती पर पद्मावती से शादी के लिए उनके पास कन्या शुक्ल चुकाने के पैसे भी नहीं थे। विष्णु ने अन्य प्रमुख देवताओं कुबेर से काफी धन कर्ज लिया। इस कर्ज से भगवान विष्णु के वेंकटेश रूप और देवी लक्ष्मी के अंश पद्मावती ने विवाह किया। कुबेर से कर्ज लेते समय भगवान ने वचन दिया था कि कलियुग के अंत तक वह अपना सारा कर्ज चुका देंगे। वहीं कर्ज खत्म ना होने तक वह सूद चुकाते रहेंगे।
क्या है मान्यता
भगवान के कर्ज में डूबे होने की इस मान्यता के कारण बड़ी मात्रा में भक्त धन दौलत भेंट करते हैं ताकि भगवान कर्ज मुक्त हो जाएं। भक्तों से मिले दान की बदौलत आज यह मंदिर करीब 50 हजार करोड़ की संपत्ति का मालिक है। माना जाता है कि तिरुपति बाला जी के यहां जो भक्त दान दक्षिणा देकर आता है, भगवान उसका दस गुना वापस करते हैं। भगवान द्वारा इस प्रकार दान दक्षिणा लेना और फिर कई गुना वापस करना ही कुबेर से लिया गया धन और उस कर्ज का सूद चुकाने की प्रक्रिया माना जाता है।
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