जब भगवान विष्णु ने भोलेनाथ को दान कर दी अपनी एक आंख, जानें यह रोचक कथा
सनातन धर्म में हर भगवान का अपना एक महत्व और सबकी महिमा अलग विधान है। हर दिन के हिसाब से सप्ताह में सातों दिन अलग अलग भगवान को समर्पित है, जिसमें गुरुवार का दिन भगवान विष्णु की पूजा अर्चना के लिए जाना जाता है।पौराणिक कथाओं में त्रिदेव यानी ब्रह्मा, विष्णु और महेश को श्रेष्ठ माना गया है। एक ओर ब्रह्माजी को सृष्टि का रचयिता माना जाता है। वहीं विष्णुजी को जगत का पालनहार और महेश यानी शिवजी को संहारक माना जाता है। भगवान शिव को असुर और अधर्मियों का वध करने के लिए जाना जाता है। कहते हैं एक बार भगवान विष्णु को असुरों का वध करने के लिए दिव्य अस्त्र की जरूरत पड़ी तो उन्होंने शिव की तपस्या शुरु कर दी। भगवान विष्णु ने तपस्या के दौरान शिव जी को अपनी एक आंख भेंट कर दी।
आईए जानते हैं इस पौराणिक रोचक कथा के बारें में-
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार एक बार धरती पर राक्षसों का अत्याचार बढ़ गया। असुरों की दृष्टि स्वर्ग पर अधिकार जमाने पर टिकी थी। इससे भयभीत होकर स्वर्ग के सभी देव विष्णुजी के पास पहुंचे। उन्होंन धरती और स्वर्ग लोक को राक्षसों से मुक्त करने की गुहार लगाई। विष्णु भगवान को पता था कि इसका समाधान सिर्फ भोलेनाथ के पास ही है।
भगवान विष्णु ने की शिव जी की तपस्या
ऐसे में भगवान विष्णु ने भोलेनाथ की तपस्या आरंभ कर दी। इसके लिए वह शिवजी के हजार नाम जपते और हर नाम के साथ एक कमल का फूल चढ़ाते। ऐसे में शिवजी के दिमाग में एक विचार आया और भोलेनाथ ने विष्णुजी की परीक्षा लेनी चाही। वे विष्णु भगवान के समक्ष पहुंचे और चुपके से एक कमल का फूल चुरा लिया। विष्णु जी अपनी तपस्या में लीन थे, उन्हें इस बात का पता नहीं चला। जब उन्होंने आखिरी नाम जपा, तो उनके पास कमल का फूल नहीं था। अगर वे फूल नहीं चढ़ाते तो उनकी पूरी तपस्या भंग हो जाती।
और फिर मिल गया सुदर्शन चक्र
ऐसे में विष्णु भगवान ने उस कमल के फूल के स्थान पर तुरंत ही अपनी एक आंख निकली और शिवजी को समर्पित कर दी। भगवान शिव विष्णु जी की तपस्या से प्रसन्न हुए और उनसे वरदान मांगने को कहा। फिर विष्णु भगवान ने राक्षसों के संहार के लिए एक अचूक शस्त्र मांगा, जिसके फलस्वरूप शिवजी ने उन्हें सुदर्शन चक्र प्रदान किया,जिसका वार कभी खाली नहीं जाता था। इसके बाद विष्णुजी ने सुदर्शन चक्र से अत्यंत खूंखार राक्षसों को मार गिराया और इस धरती को अधर्मियों के प्रकोप से बचाया।
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