चार महीने बाद जागेंगे श्री हरि विष्णु, जानिए देवउठनी एकादशी पर क्यों होती है तुलसी शालिग्राम विवाह की परंपरा?
कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष एकादशी तिथि के दिन भगवान विष्णु चार महीने के बाद योग निद्रा से जागते हैं, जिसे देवउठनी एकादशी के रूप में जाना जाता है। मान्यता है कि इस दिन पूजा पाठ करने से भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती हैं और उनसे भगवान विष्णु व माता लक्ष्मी प्रसन्न होते हैं। आज के ही दिन भगवान शालिग्राम और माता लक्ष्मी का विवाह भी होता है। देव उठनी एकादशी को देव प्रबोधिनी एकादशी और देवोत्थान एकादशी के नाम से भी जाना जाता है।
आज के दिन भगवान विष्णु को विशेष मंत्रों से योग निद्रा से जगाया जाता है और चातुर्मास खत्म हो जाता है। सभी शुभ और मांगलिक कार्य की शुरुआत आज से हो जाती है। इन मंत्रों के शुद्ध उच्चारण से भगवान विष्णु की कृपा सदैव बनी रहती है। शास्त्रों में वर्णित यह मंत्र सरल अवश्य है लेकिन इन्हें चमत्कारी माना जाता है। इसलिए आज के दिन इनका उच्चारण करने से शुभ परिणाम मिलते हैं। इसके साथ ही देवउठनी एकादशी पर भगवान विष्णु की आरती जरूर करें, बिना आरती के कोई भी पूजा का फल नहीं मिलता है।
देवउठनी एकादशी पर पढ़ें भगवान विष्णु का यह मंत्र
* शान्ता कारं भुजग शयनं पद्म नाभं सुरेशम्
विश्वा धारं गगन सदृशं मेघ वर्णं शुभाङ्गम् ।
लक्ष्मी कान्तं कमल नयनं योगिभिर्ध्या नगम्यम्
वन्दे विष्णुं भव भय हरं सर्वलोकैक नाथम् ।।
* ॐ श्री विष्णवे च विद्महे वासुदेवाय धीमहि।
तन्नो विष्णुः प्रचोदयात्।।
* मङ्गलम् भगवान विष्णुः, मङ्गलम् गरुणध्वजः।
मङ्गलम् पुण्डरी काक्षः, मङ्गलाय तनो हरिः।।
* ॐ नमोः नारायणाय।।
* ॐ नमोः भगवते वासुदेवाय।।
देवउठनी एकादशी कथा
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार भगवान विष्णु चार महीने के लिए योग निद्रा में होते हैं। भगवान विष्णु देवशयनी एकादशी से लेकर देव प्रबोधिनी एकादशी तक पाताल लोक में निवास करते हैं। वामन पुराण के अनुसार भगवान विष्णु वामन अवतार में राजा बलि से तीन पग भूमि मांगा था। तब दानवीर राजा बलि से प्रसन्न होकर भगवान विष्णु ने राजा बलि को पाताल लोक का राजा बना दिया और वर मांगने को कहा। तब राजा बलि ने भगवान विष्णु से पाताल लोक में निवास करने का वरदान मांगा लिया था। राजा बलि की इच्छा को पूरा करते हुए भगवान विष्णु चार महीने के लिए पाताल लोक में रहने का वरदान दिया था। तभी से चार महीनों के लिए भगवान विष्णु पाताल लोक में निवास करते हैं। इस दौरान सभी तरह के शुभ और मांगलिक कार्य थम जाते हैं और फिर कार्तिक महीने के शुक्ल पक्ष की एकादशी पर भगवान विष्णु वैकुंठ धाम में माता लक्ष्मी संग निवास करने लगते हैं। इन चार महीने को ही चातुर्मास कहा जाता है।
वृंदा ने दिया था भगवान विष्णु को श्राप और बन गए थे पत्थर
चार महीने के योग निद्रा के भगवान विष्णु जागते हैं और इस तिथि को ही देवउठनी एकादशी कहा जाता है। देवउठनी एकादशी पर भगवान विष्णु के शालिग्राम स्वरूप से तुलसी माता का विवाह होता है। देवउठनी एकादशी पर तुलसी विवाह के पीछे एक पौराणिक कथा है। कथा के अनुसार प्राचीन काल में तुलसी जिनका एक नाम वृंदा है,शंखचूड़ नाम के असुर की पत्नी थी। शंखचूड़ दुराचारी और अधर्मी था,देवता और मनुष्य,सभी इस असुर से त्रस्त थे। तुलसी के सतीत्व के कारण सभी देवता मिलकर भी शंखचूड़ का वध नहीं कर पा रहे थे। सभी देवता मिलकर भगवान विष्णु और शिवजी के पास पहुंचे और उनसे दैत्य को मारने का उपाय पूछा। उस समय भगवान विष्णु ने शंखचूड़ का रूप धारण करके तुलसी का सतीत्व भंग कर दिया। जिससे शंखचूड़ की शक्ति खत्म हो गई और शिवजी ने उसका वध कर दिया। बाद में जब तुलसी को ये बात पता चली तो उसने भगवान विष्णु को पत्थर बन जाने का श्राप दे दिया। विष्णुजी ने तुलसी के श्राप को स्वीकार किया और कहा कि तुम पृथ्वी पर पौधे और नदी के रूप में रहोगी और तुम्हारी पूजा भी की जाएगी।मेरे भक्त तुम्हारा और मेरा विवाह करवाकर पुण्य लाभ प्राप्त करेंगे।उस दिन कार्तिक शुक्ल एकादशी का दिन था।तुलसी नेपाल की गंडकी और पौधे के रूप में आज भी धरती पर हैं। गंडकी नदी में ही शालिग्राम मिलते हैं।
Your email address will not be published. Required fields are marked *
Copyright © 2010 - 2022 Birthastro.com. All Right Reserved.