प्रथम अराध्य भगवान गणेश के नाम से ही हर व्यक्ति अपने जीवन में किसी नए कार्य की शुरुआत करता है। देश भर में वैसे तो गणेश जी के कई मंदिर है लेकिन जयपुर में एक गणेश जी का एक अनोखा मंदिर है। गणपति जी का ध्यान आते ही उनका एक स्वरूप जो नजर आता है, उससे इस मंदिर में विराजित प्रतिमा काफी भिन्न है। यहां बिना सूंड वाले भगवान गणपति का एक मात्र मंदिर है। देशभर में गणपति भगवान के कई सिद्ध मंदिर हैं, लेकिन ये मंदिर अपने आप में एक अलग पहचान लिए हुए है, क्योंकि इस मंदिर में बिना सूंड वाले भगवान गणपति जी विराजमान हैं। जयपुर में स्थित ये मंदिर अति प्राचीन है और मान्यता है कि यहां जो भी मनौती मांगी जाती है वह गणपति जी जरूर पूरी करते हैं।
गणेश जी बालरूप में विराजमान
राजस्थान के जयपुर की नाहरगढ़ पहाड़ी पर यह मंदिर स्थित है। जहां पर बिना सूंड वाले गणेश जी बालरूप में विराजमान है। इस मंदिर की स्थापना के पीछे कई रहस्य भी छुपे हुए हैं। कहा जाता है कि गणेश जी के आशीर्वाद से ही गुलाबी नगरी जयपुर की नींव रखी गई थी।
209 वर्ष पुराना मंदिर
बताया जाता है कि यह मंदिर रियासतकालीन होकर लगभग 209 वर्ष पुराना है। जिसकी स्थापना यहां के महाराजा सवाई जयसिंह द्वितीय ने की थी। महाराज जयसिंह को गणेशजी ने स्वप्न दिया था। जिसके बाद उन्होंने यहां पर भगवान गणेश की बाल्य रूप में प्रतिमा विराजमान की थी। नाहरगढ़ की पहाड़ी पर महाराजा सवाई जयसिंह द्वितीय ने अश्वमेघ यज्ञ करवा कर गणेशजी के बाल्य स्वरूप वाली प्रतिमा तांत्रिक विधि से स्थापित करवाई थी। इस मंदिर में गणेशजी के दो विग्रह है, जिनमे पहला विग्रह आंकड़े की जड़ का तथा दूसरा अश्वमेघ यज्ञ की भस्म से बना हुआ है।
महाराजा जयसिंह ने प्रतिमा की स्थापना इस तरह करवाई थी कि वे अपने महल इंद्र पैलेस से दूरबीन के माध्यम से प्रतिमा का ही सुबह दर्शन किया करते थे। आज भी दूरबीन के माध्यम से प्रतिमा के दर्शन किए जा सकते है।
पाषाण के दो मूषक
पहाड़ी पर बने बिना सूंड वाले भगवान गणेश के इस मंदिर में पाषाण के दो मूषक स्थापित है। जो भक्त की मुराद भगवान तक पहुंचाते है। कहा जाता है कि इन मूषक के कान में अपनी इच्छाएं बताने से यह मूषक उन इच्छाओं को बाल रूप में विराजित भगवान गणेश तक पहुंचा देते है। जिसके बाद भक्तों द्वारा मांगी जाने वाली हर मुराद जल्द से जल्द पूरी हो जाती है।
1 साल में बनी सीढ़ियां
मान्यता है कि इस मंदिर की सीढ़ियों को बनाने में एक साल लगे थे। एक सीढ़ी एक दिन में बनाई गई थी। मंदिर में कुल 365 सीढ़ियां हैं। मंदिर के निर्माण के वक्त हर रोज एक सीढ़ी बनाई जाती थी, तब जा कर एक साल में सीढ़ियां बन सकीं थीं।
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