भारत को धर्म और परंपराओं की देव भूमि कहा जाता है। अपने धार्मिक स्थलों की खूबसूरती और उनकी महत्ता के लिए जाना जाता है। लेकिन भारत का पड़ोसी देश विश्व का एकमात्र हिंदू राष्ट्र कहलाता है। लिच्छवि सम्राट के शासनकाल में राजा हरि दत्त वर्मा ने नेपाल की ऊंची पहाड़ी की चोटी पर चंगुनारायण मंदिर का निर्माण करवाया था। चंगु नाम के गांव में स्थित यह मंदिर 325 ईसवी में बनाया गया था, जो चंपक के पेड़ों के घने जंगल से घिरा हुआ है।
चौथी शताब्दी में बनाए गए इस मंदिर को विष्णु जी के सबसे प्राचीन मंदिर के तौर पर जाना जाता है। नेपाल की प्रसिद्ध पैगोडा शैली में बने भगवान विष्णु के इस मंदिर को सन् 1702 में दोबारा बनाया गया था क्योंकि एक भीषण आग में पहले का बना हुआ मंदिर पूरी तरह जलकर नष्ट हो गया था।आपको बता दें कि इस मंदिर में क्षीर सागर में नागशैय्या पर लेटे भगवान विष्णु की प्रतिमा है जो कि अद्वितीय है। चंगुनारायण मंदिर के विशाल प्रांगण में रुद्राक्ष के वृक्ष भी लगे हैं। साथ इस मंदिर का महत्व इस बात से पता चलता है कि यूनेस्को ने इस मंदिर को विश्वधरोहर की सूची में शामिल किया है।
पौराणिक कथा
चंगु नारायण मंदिर के निर्माण से जुड़ी एक कहानी बहुत प्रचलित है जिसके अनुसार प्राचीन समय में एक ग्वाला, सुदर्शन नाम के ब्राह्मण से ऐसी गाय लेकर आया जो बड़ी मात्रा में दूध देती थी। ग्वाला चंगु गांव में अपनी गाय को चराने लेकर गया और घास चरते चरते वह गाय एक पेड़ की छांव में जा खड़ी हुई। शाम में जब ग्वाला अपनी गाय को लेकर घर गया और दूध निकालने लगा तो उस गाय ने बहुत कम मात्रा में दूध दिया, ऐसा लगातार कई दिनों तक चलता रहा, जिस कारण वह ग्वाला बहुत परेशान रहने लगा। एक दिन वह उस ब्राह्मण के पास और सारी बात बताई। फिर ग्वाला और वह ब्राह्मण गाय को लेकर उसी जंगल में गए और छुपकर वहां यह देखने लगे कि जब वह गाय उस पेड़ के नीचे विश्राम करती है तब...
दोनों ने जो देखा वह बहुत चौंकाने वाला था क्योंकि एक बालक गाय के पास आकर उसका सारा दूध पी जाता था। दोनों को प्रतीत हुआ कि वह कोई शैतान है और वह पेड़ उसका घर इसलिए ब्राह्मण ने उस चंपक के वृक्ष को ही काट डाला। पेड़ कटने के बाद वहां से मानव रक्त बहने लगा और दोनों यह सोचकर रोने लगे कि उनके हाथों किसी की हत्या हो गई।
इतने में भगवान विष्णु अवतरित हुए। उन्होंने दोनों को शांत करवाया और कहा कि उन्होंने कोई पाप नहीं किया बल्कि स्वयं विष्णु को एक श्राप से मुक्ति दिलवाई है। यह पाप उन्हें तब लगा था जब गलती से उन्होंने सुदर्शन के पिता की हत्या कर दी थी। सुदर्शन और उस ग्वाले को जब ये सारी कहानी पता चली तो दोनों उस स्थान को पवित्र स्थान मानकर पूजा करने लगे और फिर वहां एक मंदिर का निर्माण करवाया गया। कहते हैं कि आज भी सुदर्शन नाम के ब्राह्मण के वंशज इस मंदिर पर पुजारी का काम करते हैं और उस ग्वाले के परिवार वाले इस स्थान की रक्षा करते हैं।
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